तुम लफ्जों की कहानी मैं कागज का पन्ना जरा सा। तुम कविता का सार मैं उसका अंतरा जरासा।
तुम सोने की मलिका, मैं मांग टीका जरा सा तुम्हें होठों से पढ़ ले, मैं बस एक ख्वाब जरा सा।
तुम लफ्जों की कहानी मैं कागज का पन्ना जरा सा।
तुम मुस्कान जहां की मैं उस पर डिंपल जरा सा,तुम समय की मल्लिका मैं एक वक्त जरा सा।
तुम ख्वाहिशों का कुआं मैं एक मन्नत जरा सा, तुम लफ्जों की कहानी मैं कागज का पन्ना जरा सा।
तुम सावन का मौसम मैं बस एक शाम जरा सा।
तुम गंगा की आरती मैं सुबह का गीत जरा सा, तुम फैला समुंदर मैं उसमें बांध जरा सा।
तुम लफ्जों की कहानी मैं कागज का पन्ना जरा सा तुम कविता का सार मैं उसका अंतरा जरा सा।
No comments:
Post a Comment